नेशनल कबड्डी खिलाड़ी की रेबीज से दर्दनाक मौत से उठे सवाल
चित्तौड़गढ़ न्यूज डेस्क।
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर निवासी नेशनल कबड्डी खिलाड़ी 22 वर्षीय बृजेश सोलंकी की हाल ही में एक मार्मिक घटना में मौत हो गई। उन्होंने नाली में गिरे एक पिल्ले को बचाया, लेकिन उसी पिल्ले ने उन्हें काट लिया। कुछ ही दिनों में बृजेश को रेबीज़ वायरस ने अपनी चपेट में ले लिया, और इलाज के अभाव में वह तड़पते हुए दम तोड़ बैठे।
यह केवल एक खबर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — जानवरों से दया और दूरदर्शिता दोनों जरूरी हैं।
बृजेश की मौत — सिर्फ एक हादसा नहीं, एक चेतावनी
22 साल की उम्र… उम्र नहीं, सपनों की रफ्तार होती है। लेकिन सोचिए, जब एक ओलंपिक में भाग लेने की तैयारी कर रहा होनहार खिलाड़ी रेबीज़ जैसी बीमारी का शिकार हो जाए, तो यह केवल एक मौत नहीं, एक व्यवस्था पर करारा तमाचा है।
बृजेश सोलंकी, बुलंदशहर के रहने वाले, राज्य स्तरीय कबड्डी खिलाड़ी थे। चंद दिनों बाद उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करना था। लेकिन उससे पहले जो कुछ हुआ, वह किसी भी जागरूक नागरिक को झकझोर देने वाला है।
एक रोज़, उन्होंने सड़क किनारे एक नाले में गिरे एक पिल्ले को बचाने की कोशिश की। मानवता की मिसाल पेश करते हुए उन्होंने उस छोटे से जानवर को बाहर निकाला। लेकिन इसी दौरान पिल्ले ने उनके हाथ पर काट लिया। घाव मामूली लगा, तो उन्होंने उसे हल्के में लिया। कोई इलाज नहीं, कोई वैक्सीनेशन नहीं।
और यही एक छोटी-सी लापरवाही, उनके जीवन की सबसे बड़ी और अंतिम भूल बन गई।
तीन महीने बाद जब बृजेश को सुबह उठने पर अपने हाथ में सुन्नपन महसूस हुआ, तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह रेबीज़ के शुरुआती लक्षण हैं। हालत बिगड़ती गई, और कुछ ही घंटों में उन्हें अजीब बेचैनी और झटकों की शिकायत हुई। अस्पताल पहुँचने तक बहुत देर हो चुकी थी।
बृजेश की मौत के पहले का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वे तड़प रहे थे… और आप वो दृश्य देख भी नहीं पाएंगे।
यह कहानी अकेले बृजेश की नहीं है।
आपको याद होगी वो वायरल तस्वीर जिसमें एक पिता कार की पिछली सीट पर अपने बेटे को लेकर रो रहा था, कह रहा था —
> “मेरे बेटे को कुत्ते ने काट लिया है, कुछ कीजिए, वो मर रहा है…”
लेकिन वो बच्चा नहीं बचा।
और ना ही बृजेश बच पाए।
अब सवाल ये है कि क्या हम कुछ सीखेंगे?
अगर आप रास्ते में किसी कुत्ते को पुचकारते हैं, अगर आप घर में एक पालतू कुत्ता पालते हैं — तो बृजेश की मौत एक मैसेज है।
एक चेतावनी है कि हर काटना खतरनाक हो सकता है। चाहे वो आवारा जानवर हो या वैक्सीनेटेड पालतू कुत्ता।
पालतू कुत्ते: कितना सुरक्षित है उन्हें घर में रखना?
आजकल शौक और अकेलेपन की पूर्ति के लिए कई लोग विदेशी नस्ल के पालतू कुत्ते पालते हैं। लेकिन क्या सभी जरूरी वैक्सीनेशन करवाए जाते हैं? क्या उनके स्वास्थ्य पर समय-समय पर नजर रखी जाती है?
विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि —
“घर में पाले जाने वाले कुत्ते भी अगर समय पर एंटी-रेबीज वैक्सीन से वंचित रहें, तो उनका काटना भी घातक हो सकता है।”
कई विशेषज्ञों का तो यह भी कहना है कि घर में पालतू कुत्ता अगर वैक्सीनेट किया हुआ है तब भी उसके काटने और इंसानी घावों को चाटने, या उसकी लार आंखों में जाने से भी रेबीज़ का खतरा हो सकता है।
कुत्तों से कैसे बरतें सावधानी?
✅ कुत्ते के संपर्क में आने के बाद तुरंत साबुन से हाथ-पैर धोएं
✅ काटने पर 15 मिनट तक बहते पानी से घाव धोएं
✅ तुरंत नजदीकी अस्पताल में जाकर एंटी रेबीज टीका लगवाएं
✅ छोटे बच्चों को आवारा या अपरिचित कुत्तों के पास न जाने दें
✅ पालतू कुत्तों को समय-समय पर वैक्सीनेट कराएं
चित्तौड़गढ़ में लापरवाह निकाय, बढ़ते आवारा कुत्ते और खतरे
चित्तौड़गढ़ शहर और आस-पास के कस्बों में आवारा कुत्तों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। ये कुत्ते कई बार बच्चों, वृद्धों और राहगीरों पर हमला कर चुके हैं, लेकिन नगर परिषद और स्थानीय निकाय सोए पड़े हैं।
एक समय जयपुर की एक फर्म को आवारा स्वानों की नसबंदी का ठेका दिया गया था, लेकिन बाद में 30 लाख रुपये का यह ठेका फर्जीवाड़े की भेंट चढ़ गया। मीडिया और जागरूक नागरिकों के हस्तक्षेप के बाद ही यह राशि रोकी गई।
क्या जनता की जान इतनी सस्ती है?
क्यों आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं?
क्यों निकाय विभाग सिर्फ कागज़ों पर अभियान चलाता है?
आवारा जानवरों की रोकथाम के लिए नियमित समीक्षा क्यों नहीं होती?
अब भी नहीं चेते तो खतरे और बढ़ेंगे…
> रेबीज एक ऐसा वायरस है जिसमें एक बार लक्षण आने के बाद मौत लगभग निश्चित होती है।
WHO के अनुसार, भारत में हर साल हजारों लोग रेबीज के शिकार होते हैं।
ऐसे में जरूरी है:
🟥 हर पालक अपने पालतू जानवरों का वैक्सीनेशन अनिवार्य करे
🟥 स्थानीय निकाय आवारा जानवरों की पहचान और निगरानी करे
🟥 नागरिक सजग रहें और काटने की घटना की तुरंत रिपोर्ट करें।
जनता की मांग — जिम्मेदार निकायों की जवाबदेही तय हो
चित्तौड़गढ़ हो या कोई और शहर, अब समय आ गया है कि आम नागरिक सिर्फ डरें नहीं, बल्कि प्रशासन से सवाल पूछें। आखिर कब तक जानें जाती रहेंगी और जिम्मेदार विभाग आँख मूँदकर बैठे रहेंगे?
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