पुलिस गश्त पर फिर उठे सवाल — सूने मकान में लाखों की सेंध,
चित्तौड़गढ़, 4 जुलाई। सदर थाना क्षेत्र के प्रताप नगर स्थित एक सूने मकान से अज्ञात चोरों ने लाखों रुपये की नकदी और सोने-चांदी के जेवरात पर हाथ साफ कर दिया। पीड़ित ने सदर थाने में मामला दर्ज करा दिया है, लेकिन अब तक न तो सुराग मिला है, न संदिग्धों की पहचान।
पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार प्रताप नगर निवासी महेंद्रपाल पुत्र रघुवीर सिंह उदयपुर में नौकरी करते हैं, जिनका नीलकंठ कॉलोनी में मकान है। 29 जून की रात महेंद्रपाल सिंह की पत्नी और बेटे जो उदयपुर में है उनसे मिलने गए थे, जिसके बाद मकान सूना था। अगले दिन महेंद्रपाल सिंह को उनकी पड़ोसी का फोन आया, जिन्होंने बताया कि उनके घर के ताले टूटे और दरवाजे खुले हैं। पड़ोसियों ने मौके पर जाकर देखा तो घर का सामान बिखरा हुआ था और ताले टूटे हुए थे, जिससे चोरी होने का अंदाजा लगा। सूचना मिलने पर महेंद्रपाल सिंह अपने मकान पर पहुंचे। अंदर जाने पर कमरों में सामान और कपड़े बिखरे हुए मिले। दोनों कमरों की अलमारियों और ड्रेसिंग टेबल के ताले भी टूटे हुए थे। प्रार्थी ने अपनी पत्नी और पुत्रवधू के साथ अलमारियों में रखे जेवरात और नकदी की जांच की तो पाया कि 40 हजार रुपए नकद, एक सोने का मंगलसूत्र, पांच सोने की अंगूठियां, पांच जोड़ी सोने के टॉप्स, एक सोने की नथनी, चांदी की पायलें और चांदी के सात सिक्के दस ग्राम के 5 और बीस ग्राम के 2 गायब थे। इसके अलावा, महेंद्रपाल सिंह और सत्येंद्र सिंह के नाम की दो चेक बुक भी गायब मिलीं, जिनमें हस्ताक्षर किए हुए चेक थे। प्रार्थी ने सदर थाने में अज्ञात बदमाशों के खिलाफ चोरी का मामला दर्ज कराया है। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
दावे बनाम हकीकत
1. रात 11 बजे बाज़ार बंद
पुलिस की “गश्त” दुकानदारों को सख़्ती से 11 बजे शटर गिरवाती है। सवाल यह है कि जब बाज़ार बंद करवा कर “क़ानून‐व्यवस्था दुरुस्त” मान लिया जाता है, तो वही रात पुलिस के पहरे में अपराधी कैसे घूमते है और चोरी कैसे हो जाती है?
2. शराब आसानी से उपलब्ध
जब रात 11 बाजार दुकानें तो बंद, तो8 बजे बंद होने वाले शराब के देख के पास में 12 बजे तक शराब कैसे उपलब्ध हो जाती है। शराबियों का आवागमन, हुड़दंग और चोरी—तीनों जारी हैं। क्या पुलिस की सख़्ती सिर्फ़ दुकानदारों तक सीमित है?
3. गश्त का दिखावा या धरातल?
नियमित ‘रूट मार्च’ और मोबाइल वैन गश्त के दावों के बावजूद चोरों ने बेख़ौफ़ होकर ताले तोड़े, अलमारियाँ उखाड़ीं और आराम से नकदी‐जेवर समेट ले गए। इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि निगरानी तंत्र काग़ज़ों तक सिमटा है?
जनता के तर्कपूर्ण सवाल
जब पुलिस कर्मी रात को दुकानों के शटर गिरवाने में व्यस्त हैं, आमजन की संपत्ति की सुरक्षा कौन संभालेगा?
रात्रि गश्ती के ठोस आँकड़े—कितने दस्ते, कितने किलोमीटर, कितनी संदिग्ध पूछताछ—क्यों सार्वजनिक नहीं होते?
छिटपुट चोरी से लेकर संगठित घोटालों तक, हर वारदात के बाद “जाँच जारी है” कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना कब बंद होगा?
राजनीतिक‐प्रशासनिक खामोशी
चोरियां हों, अवैध शराब मंडी सजे या देर रात हुड़दंग—सरकारें आती‐जाती रहीं, लेकिन “ज़ीरो टॉलरेंस” सिर्फ़ भाषणों में दिखा। बजट का बड़ा हिस्सा आधुनिक सुरक्षा संसाधनों पर खर्च होने के बावजूद सीसीटीवी नेटवर्क अधूरा, पुलिस बल में स्टाफिंग गैप, और प्रभावी बीट सिस्टम लागू न होने से अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।
> “आज़ादी के 77 साल बाद भी हम अपने घर‐आंगन की हिफ़ाज़त को लेकर ही असुरक्षित महसूस करें, तो विकास‐मॉडल किस काम का?”
— क्षेत्रीय सामाजिक कार्यकर्ता
चित्तौड़गढ़ में रात्रि सुरक्षा दिखावे से आगे नहीं बढ़ी। जब तक पुलिस‐प्रशासन “शटर ड्राइव” से निकलकर गंभीर, आँकड़ा‐आधारित गश्त और तेज़‐तर्रार जाँच तंत्र खड़ा नहीं करता, अपराधी ताले तोड़ते रहेंगे और जनता उम्मीदें।
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