जुबिलेंट खाद फैक्ट्री बना किसानों के लिए संकट का कारण, भूजल दोहन और फसल क्षति से उपजा रोष

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जुबिलेंट खाद फैक्ट्री बना किसानों के लिए संकट का कारण, भूजल दोहन और फसल क्षति से उपजा रोष
चित्तौडगढ़। नारेला क्षेत्र में संचालित जुबिलेंट खाद फैक्ट्री पर लगातार गंभीर आरोप लगते आ रहे हैं। स्थानीय किसानों का आरोप है कि फैक्ट्री पर्यावरणीय मानकों की धज्जियां उड़ाकर अवैध रूप से उत्पादन कर रही है, जिससे क्षेत्र की जल संरचना और कृषि पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है।
किसान प्रतिनिधि सियाराम जाट ने बताया कि फैक्ट्री द्वारा भूजल का अवैध दोहन, ग्रीन बेल्ट की कमी और फसलों को नुकसान पहुंचाने जैसी कई गम्भीर अनियमितताएँ की जा रही हैं। फैक्ट्री परिसर में 33 प्रतिशत ग्रीन बेल्ट होना अनिवार्य है, लेकिन यह मानक पूरा नहीं किया गया है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने जवाब में दावा किया कि 12 हजार नीम के पौधे लगाए गए हैं, लेकिन जब उनसे उन पौधों की सही स्थान और खसरा नंबर मांगे गए, तो उन्होंने जानकारी देने से मना कर दिया। फैक्ट्री प्रबंधन स्थानीय ग्रामीणों को लालच देकर गोपनीय रूप से जल दोहन करवा रहा है, जिससे क्षेत्र में भूजल स्तर खतरनाक रूप से गिर गया है। कृषि विभाग द्वारा गठित जांच टीम ने फसलों की खराब स्थिति की पुष्टि की और मुआवज़ा देने की सिफारिश की थी, जिसे फैक्ट्री ने स्वीकार भी किया लेकिन आज तक एक भी किसान को मुआवजा नहीं मिला। किसानों का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण मंडल की भूमिका निष्पक्ष नहीं है। मंडल की ओर से सिर्फ औपचारिक कार्यवाहियाँ की जा रही हैं, जिससे प्रतीत होता है कि वह फैक्ट्री प्रबंधन को परोक्ष रूप से संरक्षण प्रदान कर रहा है। क्षेत्र के किसानों ने सरकार व प्रशासन से मांग की है कि फैक्ट्री के अवैध कार्यों पर तुरंत रोक लगाई जाए, पारदर्शी जांच करवाकर किसानों को उचित मुआवज़ा प्रदान किया जाए। अन्यथा किसान व्यापक जनआंदोलन की तैयारी में हैं, जिसकी सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।

कभी उपजाऊ जमीन के लिए जाना जाने वाला नारेला क्षेत्र आज जुबिलेंट खाद फैक्ट्री की अवैध गतिविधियों और सरकारी उदासीनता का शिकार बन चुका है। स्थानीय किसानों का कहना है कि यह फैक्ट्री अब उनके लिए वरदान नहीं, भूजल, फसल और भविष्य — तीनों की बर्बादी का केंद्र बन चुकी है।

भूमि ली विकास के नाम पर, अब हो रहा विनाश

फैक्ट्री जब लगाई गई, तब वादे किए गए कि गांवों का विकास होगा, युवाओं को रोजगार मिलेगा, और पर्यावरण मानकों का पूरी तरह पालन होगा। लेकिन जैसे ही फैक्ट्री चालू हुई, वो सारे वादे हवा हो गए। आज न ग्रीन बेल्ट है, न पारदर्शिता, और न ही किसानों के लिए न्याय।

रात में उड़ता ज़हर, दिन में सूखती ज़मीन

स्थानीय लोगों का आरोप है कि फैक्ट्री द्वारा रात्रि में चुपचाप प्रदूषित गैसों और रसायनों का उत्सर्जन किया जाता है, जिससे आसपास की हवा और मिट्टी जहरीली हो रही है। भूजल का अवैध दोहन तो जैसे खुलेआम हो रहा है — बिना किसी पारदर्शी अनुमति या सार्वजनिक रिपोर्टिंग के।

> “किसानों की फसलें खराब हो रही हैं, पानी का स्तर लगातार गिर रहा है, और अधिकारी केवल आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं।”
— सियाराम जाट, किसान प्रतिनिधि

प्रदूषण नियंत्रण मंडल — संरक्षक या भागीदार?

जब किसानों ने सवाल किए, तो प्रदूषण नियंत्रण मंडल की कार्यशैली संदेहास्पद नज़र आई। 12 हज़ार नीम के पौधे लगाने का दावा तो किया गया, लेकिन जब पौधों के स्थान और खसरा नंबर की जानकारी मांगी गई, तो जवाब देने से इनकार कर दिया गया।

मुआवज़े की बात भी छलावा निकली

कृषि विभाग की टीम ने फसलों को हुए नुकसान की पुष्टि की और मुआवज़े की सिफारिश की। लेकिन हकीकत यह है कि आज तक एक भी किसान को एक पैसा मुआवज़ा नहीं मिला। फैक्ट्री प्रबंधन मौखिक सहमति देकर निकल जाता है, और प्रशासन आँखें मूँद कर बैठा है।

सरकार की चुप्पी — उठते सवाल!

राज्य सरकार और जिला प्रशासन को इस मुद्दे की पूरी जानकारी है। लेकिन फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सवाल ये है कि:

क्या ग्रामीणों और किसानों की ज़िंदगी से सस्ता है उद्योगपतियों का लाभ?

क्या फैक्ट्री को मिली सरकारी मंज़ूरी, ग्रामीणों के जीवन की कीमत पर दी गई थी?

क्यों प्रदूषण मापने और रिपोर्टिंग की कोई सार्वजनिक व्यवस्था नहीं है?

किसानों ने दी आंदोलन की चेतावनी

किसानों ने साफ चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र पारदर्शी जांच कर जुबिलेंट फैक्ट्री की अवैध गतिविधियों पर रोक नहीं लगाई गई और उचित मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो वे बड़े स्तर पर जनआंदोलन करेंगे। इसकी संपूर्ण ज़िम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी।

जुबिलेंट खाद फैक्ट्री से भूजल गिर रहा है, फसलें बर्बाद हो रही हैं

प्रदूषण नियंत्रण मंडल और प्रशासन सिर्फ दिखावा कर रहे हैं

किसानों को अब तक कोई मुआवज़ा नहीं मिला

जनआंदोलन की चेतावनी के बाद भी सरकार मौन है

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