Is Sonia Gandhi not returning Jawaharlal Nehru’s historical letters?
देश की राजनीति में एक बार फिर गहराता विवाद — इस बार भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्रों को लेकर। प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी (PMML) ने सोनिया गांधी से इन अहम दस्तावेजों की वापसी या डिजिटलीकरण संबंधी सहयोग की मांग की है, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
इस विवाद का सार:
क्या हुआ था 2008 में
PMML का दावा है कि 2008 में उस समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश से जवाहरलाल नेहरू के 51 डिब्बे (cartons) म्यूज़ियम से वापस लिए गए थे, जिनमें विभिन्न हस्तियों—जैसे एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ़ अली—को लिखे पत्र शामिल थे .
कौन लिखता रहा है पत्र?
सितंबर 2024 में PMML सदस्य और इतिहासकार रिजवान कादरी ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा मांग पूरी करने हेतु। जब कोई जवाब न मिला, तब दिसंबर में उन्होंने राहुल गांधी को भी पत्र भेजा .
मंगलवार को PMML की AGM में निर्णय
24 जून 2025 को हुई मीटिंग में, PMML ने कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्णय लिया ताकि ये दस्तावेज़ वापस म्यूज़ियम ले जाए जाएं .
राजनैतिक दलों की प्रतिक्रिया
भाजपा के Sambit Patra ने पूछा कि “ये दस्तावेज़ निजी संपत्ति नहीं, बल्कि भारत की विरासत हैं” .
BJP ने यह स्पष्ट किया कि यहाँ “केंद्रीय राष्ट्रीय धरोहर” का सवाल है, न कि “पहली परिवार की संपत्ति” का .
क्या कहती है PMML?
यह तर्क तोड़ा गया है कि एक बार जब दस्तावेज़ दान या उपहार के रूप में दिए जाते हैं, तो वे अब संस्था के स्वामित्व में होते हैं—इन्हें वापस लेने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए .
PMML ने डिजिटलीकरण शुरू किया था (2010 में), लेकिन उस प्रक्रिया से पहले ही ये कागजात वापस ले लिए गए—इससे शोध की संभावनाएँ बाधित हो गईं ।
आगे क्या होगा?
1. कानूनी लड़ाई: PMML कानूनी राय पर आधारित एक्शन शुरू करने की तैयारियों में है—इस पहलू पर AGMP मिलकर आगे का फ़ैसला करेगी।
2. राहुल गांधी से अपील: अब तक राहुल गांधी या सोनिया गांधी की तरफ़ से कोई औपचारिक जवाब नहीं आया है, लेकिन PMML मन्तव्य है कि उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी ।
3. संभावित राजनीतिक चिंगारी: BJP के सवाल—“ये पत्र क्यों हटाए गए?”, “क्या इनमें ऐसी कोई सामग्री थी जो प्रथम परिवार नहीं चाहता कि सार्वजनिक हो?”—से विवाद और तेज़ हो सकता है।—
बैकग्राउंड और महत्त्व
ये पत्र पब्लिक हिस्ट्री का हिस्सा हैं—इसके अध्ययन से इतिहासकारों को 20वीं सदी के कई घटनाक्रमों पर गहरा विश्लेषण मिल सकता है।
दोपहर में विवाद: इसमें नेहरू-एडविना माउंटबेटन संबंधों को लेकर बनी एक दूसरी बहस भी उभर रही है; भाजपा इसे “राजनीतिक हथियार” बना रही है।
यह विवाद केवल दस्तावेज़ वापसी तक सीमित नहीं—यह सवाल है कि भारत की ऐतिहासिक विरासत को कौन नियंत्रित करता है? सार्वजनिक संस्थाएं, या निजी परिवार?
आने वाले दिनों में कोर्ट-संसदीय बहस, और मीडिया की टीका-टिप्पणी इस बहस को और अधिक रोचक बना सकती है।
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