समुद्र की गहराई से विनाश का संकेत? केरल में मछुआरों के जाल में फंसी दुर्लभ ‘डूम्सडे ओ

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Sign of destruction from the depths of the sea? Rare ‘Doomsday O’ fish caught in fishermen’s net in Kerala

तिरुवनंतपुरम (केरल), जून 2025

हाल ही में केरल के समुद्री तट पर मछुआरों के एक समूह को एक रहस्यमय और अत्यंत दुर्लभ मछली उनके जाल में फंसी मिली, जिसे ओअरफिश (Oarfish) कहा जाता है। यह मछली वैज्ञानिक समुदाय में “डूम्सडे फिश” के नाम से भी जानी जाती है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से इसके दिखने को प्राकृतिक आपदाओं से जोड़ा गया है।

क्या है ओअरफिश?

ओअरफिश (Regalecus glesne) दुनिया की सबसे लंबी हड्डीदार मछली मानी जाती है, जो समुद्र की सतह से लगभग 200 से 1000 मीटर की गहराई में पाई जाती है। यह मछली सामान्यतः दिखाई नहीं देती, लेकिन जब यह सतह पर आती है, तो इसे किसी बड़े समुद्री परिवर्तन या भूकंपीय गतिविधि से जोड़ा जाता है।

डर या विज्ञान?

जापान समेत कई एशियाई देशों में ऐसी मान्यता है कि ओअरफिश का सतह पर आना भविष्य में भूकंप या सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का संकेत हो सकता है। 2011 के जापान भूकंप से पहले भी कई ओअरफिश समुद्रतट पर देखी गई थीं, जिससे इस धारणा को बल मिला।

हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण इससे अलग है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के समुद्री जीवविज्ञानी डॉ. राजीव पिल्लै के अनुसार:

> “ओअरफिश की उपस्थिति का सीधे तौर पर भूकंप से संबंध साबित नहीं हुआ है। यह संभव है कि समुद्री धारा, जलवायु परिवर्तन या प्रदूषण के कारण गहराई में रहने वाली प्रजातियां ऊपर आ रही हों।”

केरल में मिली ओअरफिश की स्थिति

यह मछली लगभग 12 फीट लंबी थी और मृत अवस्था में मछुआरों के जाल में फंसी मिली। स्थानीय मत्स्य विभाग ने इसकी जानकारी समुद्री अनुसंधान केंद्रों को भेजी है और इसका डीएनए विश्लेषण भी शुरू कर दिया गया है ताकि यह समझा जा सके कि यह मछली किस कारण सतह तक आई।

जनता में चिंता, वैज्ञानिकों की अपील

स्थानीय लोगों में जहां इस मछली को देखकर चिंता और भय का माहौल है, वहीं वैज्ञानिकों ने संयम बनाए रखने की अपील की है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटना को अंधविश्वास की बजाय वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

ओअरफिश का सतह पर आना निश्चित रूप से दुर्लभ है, लेकिन यह किसी भी संभावित प्राकृतिक आपदा का निश्चित संकेत नहीं है। वैज्ञानिक समुदाय इसके पीछे के वास्तविक कारणों की जांच कर रहा है। आम जनता को सलाह दी जाती है कि वे अफवाहों से बचें और वैज्ञानिक तथ्यों पर भरोसा करें।

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